Monday, 15 August 2016

जंगल

एक घने जंगल के बीच बसा यह शहर
एक तरफ यह काला अंधेर जंगल
एक तरफ ये चमचमाती इमारतों में जगमाती रौशनी
रात के सन्नाटे में गूँजती जुगनुओं की आवाज़
और उन इमारतों में भटकती तन्हा रूहों की खामोश चीख
एक ओर थमे हुये से वक़्त के ये कुछ पल
एक ओर हवा सी उड़ती ज़िन्दगी की जद्दो जेहद
मुठ्ठी में से रेत की तरह छूटती चंद पुरानी यादें
और दिन-ब-दिन सामने आती दुनिया की कड़वी हक़ीक़तें

और इन दोनों सिरों के बीच खड़ा एक मैं
कभी फुर्सत की तलाश में, कभी तन्हाई की..

No comments:

Post a Comment